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Antimkirya| Dahasanskar | Antimsanskar | Antyesti  | Karamkand |Antimkriya |अन्त्येष्टि | अंतिम क्रिया |  अंत्येष्टि | दाह संस्कार | कर्मकांड

9 Vedic Steps to perform Dahasanskar | Antimkirya |Antimkriya| Antimsanskar | Antyesti | Karamkand | Aarti Sangrah

वैदिक दहा क्रिया पद्धति द्वारा अंतिम संस्कार के ९ चरण

दशदान :-
जब किसी व्यक्ति की मृत्यु निश्चित मानकर उसे भूमि पर लिटा दिया गया हो, तो उसके पुत्र अथवा किसी निकट संबंधी के द्वारा उससे निम्नलिखित वस्तुओं का परिगणन कराया गया है, वे हैं - गो, भूमि, तिल, सुवर्ण, घृत, वस्र, धान्य, गुड़ रजत तथा लवण।

वैतरणी :-
इसके अनुष्ठान के सम्बन्ध में कहा गया है कि व्यक्ति को मरणासन्न जानकर उसके समक्ष एक बछड़े सहित गाय को लाकर उसे व्यक्ति के हाथ में उसकी पूँछ को पकड़ा कर संकल्प पूर्वक उसका दान करना चाहिए। उसे यह नाम दिये जाने का आधार यही है कि इसकी पूँछ को पकड़कर मृतात्मा यमलोक के मार्ग में पड़ने वाली वैतरणी नामक भयावह नदी को सरलता पूर्वक पार कर सकता है।

पावनात्मक द्रव्य योग :-
इस काल में पुराणकारों के द्वारा गंगा तथा तुलसी की पावनात्मक महिमा को स्थापित कर दिये जाने से मृतक की सद्गति एवं मोक्ष की कामना से मरते समय उसके मुँह में तुलसीदल तथा गंगाजल डालने की परम्परा भी अस्तित्व में आ गयी। तथा उत्तरकालीन संस्कार पद्धतियों में इसका विधान किया जाने लगा। इसमें वर्णित तुलसीदल तथा गंगाजल के विशेष महत्व के प्रभावांतर्गत ही उत्तरवर्ती ग्रंथों में मृतक संस्कारों के संदर्भ में इनका विधान किया जाने लगा था।

 

केशवपन :-

यह विधान भी पाया जाता है कि वपन ( मुंडन ) केवल वही सपिण्डी कराये, जो कि प्रथम बार अपने माता- पिता की मृत्यु पर वपन करा चुके हों। "मदनपारिजात' का कहना है कि अंत्येष्टि कर्ता को वमनकर्ता को वमनकर्म प्रथम दिन तथा अशौच की समाप्ति पर करना चाहिए।
इसके अतिरिक्त अंत्येष्टि से सम्बन्ध उत्तरवर्ती प्रबंध ग्रंथों तथा संस्कार पद्धतियों में शवयात्रा की तैयारी से लेकर शवदाह तक और भी अनेक ऐसे अनुष्ठानों का विधान पाया जाता है, जिनका कि स्मृति काल तक कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता है, यथा संस्कार संकल्प, मृतक पिण्डदान, चितास्थल की शुद्धीकरण, चितारचना सम्बन्धी विधान, कपालक्रिया, कपोतावशेष आदि- आदि। इतना ही नहीं भिन्न- भिन्न लेखकों में इनके सम्बन्ध में मतभेद की स्थिति भी पायी जाती है। उदाहरणार्थ, मृतकक्रिया करने वाले के द्वारा की जाने वाली केशवपन की क्रिया के विषय में शुद्धिप्रकाश, प्रायश्चित आदि में भिन्न- भिन्न विधान किया गया है।

दाहाग्नि :-
तदनुसार आहिताग्नि व्यक्ति के शव का दाह ""आहिताग्नि'' की तीनों अग्नियों से, अनाहिताग्नि का केवल एक अग्नि से तथा अन्य लोगों का लौकिक अग्नि से किया जाना चाहिए।

मुखाग्निदान :-
यह कार्य मृतक के ज्येष्ठ पुत्र अथवा तत्स्थानीय किसी सपिण्डी कर्मकर्ता के द्वारा किया जाता होगा। पुत्र के अभाव में पत्नी के द्वारा इसे किये जाने की तथा गरुड़ पुराण में पत्नी के न होने पर सहोदर भाई द्वारा अथवा पुत्र के न रहने पर पुत्रवधू के द्वारा भी मुखाग्नि दिये जाने का विधान किया गया है। उत्तरवर्ती कालों में भ्रातृपुत्र (भतीजे) को भी पुत्र की समकक्षता प्रदान किये जाने से पुत्र के अभाव में इसे ही मुखाग्नि देने का अधिकारी समझा जाता है।

 

कपाल क्रिया :-
इस
के अंतर्गत अंत्येष्टि संस्कार करने वाला व्यक्ति चिताग्नि देने के उपरांत शव के अर्धदग्ध हो जाने पर चिता पर घी तथा हवन सामग्री की आहुतियाँ देकर सभी शवयात्रियों के हाथों में चंदन की लकड़ी का टुकड़ा या हवन सामग्री देता है। तदुपरांत अंत्येष्टिकर्ता पूर्णाहुति के निमित्त शववाहन ( अर्थी ) से बचाकर रखे हुए बांस के डंडे की नोंक पर एक छिद्रयुक्त नारियल के गोले को अटकाकर ""ऊँ पूर्णमद: पूर्णमिदम्.'' के वैदिक मंत्र के साथ उसे भेदित तालु के स्थान पर रख देता है तथा शवयात्री अपने हाथों में ली हुई हवन सामग्री या चंदन की लकड़ी के टुकड़ों को मृतात्मा की शांति की प्रार्थना के साथ चिता में डाल देते हैं।

कपोतावशेष :-
तद्नुसार शव के सम्पूर्ण रुप से भस्मसात् हो जाने के उपरांत अंत में जब एक छोटा- सा मांसपिण्ड दुग्ध होने से रह जाता है, जो कि सम्भवतः उसके हृदय का भाग होता है तथा जो एक कबूतर के मांस पिण्ड के बराबर होने के कारण "कपोतावशेष' कहलाता है। उसे चिताग्नि से बाहर निकाल कर दुग्ध मिश्रित जल अथवा शुद्ध जल से प्रक्षालित करके पहले से ही बचाकर रखे हुए शव वस्र के एक खण्ड में रखकर या तो, यदि चिता नदी तट पर हो, गहरे जल में विसर्जित कर दिया जाता है, ताकि जल- जंतु उसका भक्षण कर लें या पानी के नीचे किसी भारी पाषाण खण्ड से दबाकर रख दिया जाता है।

चिंताग्निशमन :-
उपर्युक्त रुप में "कपोतावशेष' का विसर्जन कर दिये जाने के उपरांत अंत्येष्टि कर्ता के द्वारा चिता पर "वसोधारा' ( घी की धारा ) अर्पित की जाती है तथा अंत में मृतक के पुत्र अंजलि बाँध कर चिता की परिक्रमा करके अपनी अंजलियों से उस पर जल डाल कर चिताग्नि को शांत करते हैं।तदनुसार मृतक के निकट सम्बन्धी या सभी शवयात्रियों को चिता के अवशिष्ट अंगारों को दुग्ध मिश्रित जल से शांत करके ही आना चाहिए।

Antim Kirya 

Disclaimer  : Resarch on the subject is  still underway, and all the information mentioned above is picked from several authentic  sources, still the subject has is highly controversial and opinions and views differ on this, we respect your views and appriciate your views, this is not the final process.

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Antim Kirya  is located in Noida, Sector 62, Uttar Pradesh

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